CineTalk India Bollywood मूवी रिव्यू : सितारे जमी पर (2025)

मूवी रिव्यू : सितारे जमी पर (2025)

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Film Review : Sitare Zameen Par (2025)

Directed by : R.S. Prasanna

Starring : Aamir Khan, Genelia D’Souza, and 10 specially-abled children

Duration : Approx. 2 hours 45 minutes

Genre : Social Drama, Sports, Emotional Reality

Language : Hindi

कहानी : हम नॉर्मल हैं लेकिन थोड़ा अलग हैं…

हम नॉर्मल हैं लेकिन थोड़ा अलग हैं…फिल्म के सीन में बास्केटबॉल कोच गुलशन बने आमिर खान को सेक्योरिटी गार्ड बने आशीष पेंडसे कहते हैं। ‘सितारे जमीन पर’ भी आम कमर्शियल फिल्मों से थोड़ी अलग  और हट कर है। एंटरटेनमेंट करना अगर ‘पुष्पा’ या ‘केजीएफ’ ही है तो इन जैसी फिल्मों की लाइफ भी दूध की उफान की तरह होती है, जिन्हें बाद में कोई याद नहीं रखता। ‘सितारे जमीन पर’ राजकपूर की ‘मेरा नाम जोकर’, गुरुदत्त की ‘प्यासा, कागज के फूल’, वी शांताराम की ‘दो आंखें बारह हाथ’ जैसी है,​ जिन्हें आज भी हर फिल्म स्कूल में पढ़ाई जाती है। लोग बार-बार देखते हैं। यह फिल्म हंसाते-हंसाते रुलाती है और रुलाते-रुलाते हंसाने लगती है। आमिर के साथ 10 स्पेशली एबल्ड बच्चों की दुनिया, उनके सपनों व उनके बास्केट बॉल खेल में दर्शक पौने तीन घंटे डूबते-उतराते रहते हैं। फिल्म थोड़ी लंबी है, गाने पॉपुलर नहीं हो पाए हैं, आमिर खान कई बार ओवर एक्सप्रेशन के शिकार हुए हैं- ये छोटी कमियां हैं, लेकिन फिल्म में इतनी अच्छी, मनोरंजक चीजें हैं कि आप फिल्म देख खुश होंगे। आमिर खान की तारीफ करनी चाहिए कि भले स्पैनिश फिल्म से एडोप्टेड कहानी हो, लेकिन भारतीय दर्शकों के लिए बिल्कुल नई और उम्मीद भरी कहानी है। पत्नी सुनीता के किरदार में जेनेलिया डिसूजा खूबसूरत लगी हैं। 10 स्पेशल बच्चे आपको हंसाते-रुलाते और खूब मनोरंजन करते हैं। फिल्म देख डायरेक्टर आरएस. प्रसन्ना के आप फैन हो जाएंगे।

अभिनय : किरदार में डूबे नजर आएं अभिनेता

  • आमिर खान इस बार भी किरदार में डूबे नजर आते हैं, हालांकि कुछ सीन में ओवर एक्सप्रेशन दिखता है, पर उनका इमोशनल कनेक्ट जबरदस्त है।
  • जेनेलिया डिसूजा (पत्नी सुनीता के किरदार में) कमाल की दिखी हैं। खूबसूरत, संतुलित और प्रभावशाली।
  • असली स्टार्स हैं 10 स्पेशली एबल्ड बच्चे, जिनका हर दृश्य दिल छू जाता है। कभी हंसाते हैं, तो कभी आंखें नम कर जाते हैं।

निर्देशन और मेसेज : ऑटिज़्म, डाउन सिंड्रोम, लो आईक्यू जैसी स्थितियों का साकारात्मक रूप

आर.एस. प्रसन्ना का निर्देशन गहराई लिए हुए है। फिल्म की कहानी भले स्पेनिश फिल्म से प्रेरित हो, लेकिन भारतीय दर्शकों के दिलों को छूने लायक प्रस्तुति दी गई है। यह फिल्म ऑटिज़्म, डाउन सिंड्रोम, फ्रेजाइल एक्स, लो IQ जैसी स्थितियों को बेहद संवेदनशील और सकारात्मक रूप में दिखाती है।

डायलॉग : फिल्म में एक से बढ़कर एक डायलॉग

  • गुरपाल सिंह कोच को कहता है ‘जो बाकी लोगों से अलग होते हैं, उनके लिए किसी न किसी को लड़ना होता है’। यह फिल्म भी एक लड़ाई है, उन लोगों से जो ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम, फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम, लो आईक्यू जैसी कई बीमारियों से जूझ रहे लोगों को ‘पागल’ कहते हैं।
  • ‘इनके घरवालों को बहुत मुश्किल होती है, लेकिन ये कभी घर को बूढा नहीं होने देते’… फिल्म के डायलॉग शानदार है, कई बड़ी बातें कॉमेडी स्टाइल में कह दिए गए हैं। एक सीन में इस डायलॉग से स्पेशली एबल्ड बच्चों के बारे में कहा जाता है कि एक घर में जब बच्चे बड़े होकर नौकरी करने बाहर चले जाते हैं, तब वह घर बूढा हो जाता है, जबकि ऐसे बच्चे जिस घर में रहते हैं, वह घर कभी बूढ़ा नहीं होता।
  • ‘लड़ाई होती है तो खत्म होती क्यों नहीं, सॉरी बोलो तो खत्म होती है’ बस के एक सीन में गोलू खान कोच को कहती। आप बड़ों की लड़ाई खत्म नहीं होती, क्योंकि आप सॉरी नहीं बोलते।
  • फिल्म के कई फनी डायलॉग मजेदार हैं, लेकिन हकीकत बताते हैं, जैसे ‘मर्दों व हसबैंड की हाइट कितनी भी छोटी हो ईगो बहुत बड़ा होता है’, ‘बॉयफ्रेंड सब अच्छे होते हैं क्योंकि उन्हें कोई जिम्मेवारी नहीं उठानी पड़ती’
  • स्पेशली एबल्ड के बारे में फिल्म में कहा गया है ‘आजतक ऐसी कौन सी चीज है जो उनको मन की मिली हो, फिर भी हमेशा खुश रहते हैं’, ‘जिनका दिल इतना बड़ा हो उनमें कमी कैसे हो सकती है’ यही फिल्म का फलसफा है और हमारी जिंदगी का भी। हम थोड़ा कुछ कम हो जाए तो निराश हो जाते हैं, ये बच्चे हमेशा खुश रहते हैं।
  • ‘मम्मियों की भी लाइफ होती है’…फिल्म में सिर्फ स्पेशली एबल्ड ही नहीं मम्मियों की बातें उठाई गई हैं, जब एक सीन में गुलशन अपनी मम्मी को उनके ब्वॉयफ्रेंड के साथ देख लेता है, जबकि उसका पिता दशकों पहले उसकी मां को छोड़कर किसी और महिला के साथ चला गया है। 
  • ‘हम दूसरे नंबर पर जीते हैं’…क्लाइमेक्स में इस सकारात्मक डायलॉग आता है जब गोलू कोच को कहती है। हार को भी पॉजिटिव रूप में लेने की यह फिल्म सीख देती है।

देखें या न देखें…

यह फिल्म हंसते-हंसाते जीवन की कितनी सीख दे जाता है। एक बार जरूर देख सकते हैं। बच्चों को दिखाएं। निराश नहीं होंगे। हंसते हुए थिएटर के अंदर जाएंगे और हंसते हुए ही बाहर आएंगे। सौ फीसदी मनोरंजन करके। बहैर निराश हुए।

Rating : ⭐⭐⭐⭐☆ (4/5)

~Review by : Kundan Kumar Chaudhary, Film Critic & Senior Journalist, Dainik Bhaskar Ranchi.

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